अधिकरण
प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
अधिकरण संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. आधार । आसरा । सहारा ।
२. व्याकरण में कर्तो और कर्म द्बारा क्रिया का आधार । सातवाँ कारक । इसकी विभक्तियाँ 'में ओर पर' है ।
३. प्रकरण । शीषर्क ।
४. दर्शन में आधार विषय़ । अधिष्ठान । जैसे—ज्ञान का अधिकरण आत्मा है (शब्द॰) ।
५. मीमांसा ओर वेदांत के अनुसार वह प्रकरण जिसमें किसी सिद्धात पर विवेचना की जाय ओर जिसमें ये पाँच अवश्य़ हो॰— विषय संशय, पुर्वपक्ष, उत्तरपक्ष ओर निर्णय ।
६. सामान । पदार्थ ।
७. न्यायालय ।
८. प्रधानता । प्रधान्य ।
६. अधिकारप्रदान ।
अधिकरण सिद्धात संज्ञा पुं॰ [सं॰ अधिकरणतिद्बान्त] न्याय दर्शन में वह सिद्धात जिसके सिद्ध होने से कुछ अन्य सिद्धात या अर्थ भी स्वयं सिद्ध हो जायँ । विशेष—जैसे, आत्मा देह ओर इंद्रियों से भिन्न है; इस सिद्बांत के सिद्ध होने से इंद्रियों का अनेक होना, उनके बिषयों का नियत होना, उनका ज्ञाता के ज्ञान ता साधक होना, इत्यादि विषयों की सिद्धि स्वयं हो जाती है ।