अनङ्ग
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
अनंग ^१ वि॰ [सं॰ अनङ्ग]
१. बिना शरीर का । देहरहित । उ॰— (क) अंगी अनंग की मूढ़ अमूढ़ उदास अमीत की मीत सही को । सो अथवै कबहुँ जनि केशव जाके उदात उदै सबाही को ।—केशव (शब्द॰) । (ख) मुझको प्यारी के पास पहुँचने के लिये अनंग, अर्थात् शरीरविहीन क्यों नहीं बना देते ।— प्रेमघन॰ भाग २, पृ॰ ४३२ ।
अनंग ^२ संज्ञा पुं॰
१. कामदेव । उ॰—आगे सोहै साँवरो कुँवर गोरो पाछे पाछे, आछे, मुनिवेष धरे लाजत अनंग है ।—तुलसी ग्रं, पृ॰ १६५ ।
२. आकाश (को॰)
३. मन (को॰) ।
४. वह जो अंग न हो (को॰) ।
अनंग अराति पु संज्ञा पुं॰ [सं॰ अनङ्ग+अराति] अनंग का शत्रु । महादेव । शिव । उ॰— तुम्ह पुनि राम राम दिन राती । सादर जपहु अनंग अराती । मानस— १ । १०८ ।