अनुषङ्ग

विक्षनरी से

हिन्दी

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

अनुषंग संज्ञा पु॰ [सं॰ अनुषङ्ग] [वि॰ अनुषंगी, अनुषंगिक]

१. करुण । दया ।

२. संबंध । लगाव । साथ ।

३. प्रसंग से एक वाक्य के आगे और वाक्य लगा देना । जैसे—'राम वन को गए ओर लक्ष्मण भी' । इस पद में "भी" के आगे 'वन को गए' वाक्य अनुषंग से समझ लीया जाता है ।

४. न्याय में उपनय के अर्थ को निगमन में ले जाकर घटाना । किसी वस्तु में किसी और के तुल्य धर्म का स्थापन करके उसके विषय में कुछ निश्चय करना । जैसे,—घट आदि उत्पात्ति धर्मवाले हैं (उदाहरण), वैसे ही शब्द उत्पात्ति धर्मवाला है (उपनय), इसलिये शब्द अनित्य है (निगमन) ।

५. उत्कट लालसा । तीव्र इच्छा ।

६. अर्थपूर्ति के लिये एक या अनेक शब्दों की आवृत्ति (को॰) ।

७. घालमेल । मिश्रण (को॰) ।

८. अवश्य होनेवाला फल (को॰) ।

९. एक शब्द का दूसरे से संबंध (को॰) ।