अन्तराय

विक्षनरी से

हिन्दी

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

अंतराय संज्ञा पुं॰ [सं॰ अन्तराय]

१. विघ्न । बाधा । अड़चन ।

२. ओट । आड़ [को॰] ।

३. ज्ञान का बाधक ।

४. योग की सिद्धि के विघ्न जो नौ प्रकार के हैं, यथा—(क) व्याधि । (ख) स्त्यान=संकोच । (ग) संशय । (घ) प्रमाद । (च) आलस्य (छ) अविरति=विषयों में प्रवृत्ति । (ज) भ्रांतिदर्शन=उलटा ज्ञान, जैसे जड़ में चेतन और चेतन में जड़ बुद्घि । (झ) अलब्ध भूमिकत्व=समाधि की अप्राप्ति । (ट) अनवस्थितत्व= समाधि होने पर भी चित्त का स्थिर न होना ।

५. जैन दर्शन में दर्शनावरणीय नामक मूल कर्म के नौ भेदों में से एक, जिसका उदय होने पर दानादि करने में अंतराय वा विध्न होते हैं । ये अंतराय कर्म पाँच प्रकार के माने गए हैं—दानांतराय, लाभांत- राय, भोगांतराग, उपभोगांतराय और वीर्यांतराय ।