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अप

विक्षनरी से

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

अप ^१ उप॰ [सं॰] उलटा । विरुद्ध । बुरा । हीन । अधिक । विशेष—यह उपसर्ग जिस शब्द के पहले आता है, उसके अर्थ में निम्नलिखित विशेषता उत्पन्न करता है ।—

१. निषेध । जैसे- अपकार । अपमान ।

२. अपकृषअट (दूषण) । जैसे—अपकर्म । अपकीर्ति ।

३. विकृति । जैसे—अपकुक्षि । अपांग ।

४. विशे- षता । जैसे—अपकलंक । अपहरण ।

अप ^२ सर्व॰ [हिं॰] 'आप' का संक्षिप्त रुप जो यौगिक शब्दों में आता है । जैसे—अपस्वार्थि । अपकाजी । उ॰—दृगनि के मग लै मोहन कहियाँ । धरि के अप अपने हिय महियाँ ।—नंद॰ ग्रं॰, पृ॰ २९५ । यौ.—अपआप=अपने आप । खुद व खुद । उ॰—नाला अपआप सागर हुआ । काहे के कारण रोता है कुवा ।—दक्खिनी, पृ॰ १ ।

अप ^३पु संज्ञा पुं॰ [सं॰ अप्] जल । पानी । उ॰—रज अप अनल अनिल नभ जड़ जानत सब कोई ।—स॰ सप्तक, पृ॰ १६ ।