अपत
प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
अपत ^१ पु वि॰ [सं॰ अ+पत्र प्रा॰ पत्त, हिं पत्ता]
१. पत्रहीन । बिना पत्तों का । उ॰—जिन दिन देखे वे कुसुम गई सो बीति बहार । अब अलि रही गुलाब की अपत कँटीली डार ।— बिहारी (शब्द॰) ।
२. आच्छादनरहित । नग्न ।
अपत ^२पु वि॰ [अ सं॰ =नहीं+हिं॰ पत=लज्जा] लज्जारहित । निर्लज्ज । उ॰—लुटे सीखिन अपत करि सिसिर सुसेज बसंत । दै दल सुमन किए सो भल सुजस लसंत ।—दीनदयाल (शब्द॰) ।
अपत ^३ पु वि॰ [सं॰ अपात्र, प्रा॰ अपत] अधम । पातकी । नीच । उ॰—(क) राम राम राम राम राम जपत । पावन किये रावन रिपु तुलसी हू से अपत ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) प्रभु जु हौं तो महा अधर्मी । अपत, उतार, अभागौ, कामी, विषयी निपट, कुकर्मी ।—सुर॰, १ ।१८६ ।
अपत ^४पु संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ अ=नहीं+पति=प्रतिष्ठा, हिं॰ पत] अप्रतिष्ठा । बेइज्जती । दुर्दशा । उ॰—जौ मेरे दीनदयाल न होते । तौ मेरी अपत करत कौरवसुत होत पंडवनि ओते ।— सूर॰ १ ।१५९ ।
अपत ^५पु संज्ञा पुं॰ [सं॰ आपत्] विपत्ति । आपत्ति ।