अपाय
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
अपाय ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰] [ स्त्री॰ अपायी]
१. विश्लेष । अलगाव ।
२. अपगमन । पीछे हटना ।
३. नाश । उ॰— सब अपाय भय खोय सदा सुभ करत जाय है ।— बुद्ध च॰, पृ॰ २१९ ।
४. पु अन्यथाचार । अनरीति । उपद्रव । उ॰— करिय संभार कोसल राय । अकनि जाके कठिन करतब अमित अनय अपाय ।— तुलसी [को॰] ।
५. खतरा । विध्न [को॰] ।
६. हानि । क्षति (को॰) ।
७. शब्दांत । शब्द की समाप्ति ।
८. गायब होना । लुप्त होना [को॰] ।
अपाय ^२ पु वि॰ [सं॰ अ= नहीं+ पाद प्रा॰ पाय= पैर]
१. बिना पैर का । लँगडा । अपाहिज ।
२. निरूपाय । असमर्थ । उ॰—राम नाम के जपे पै जाय जिय की जरनि । कलिकाल अपर उपाय ते अपाय भय जैसे तम जारिबे को चित्र को तरनि ।—तुलसी (शब्द॰) ।