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अपि

विक्षनरी से

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

अपि ^१ अव्य [सं॰]

१. भी । ही ।

२. निश्चय । ठीक । उ॰— रामचंद्र के भजन बिनु जो चह पद निर्बान । ज्ञानवंत अपि सोइ नर, पसु बिनु पूँछ, बिखान । —तुलसी ग्र॰, पृ॰ ११४ । विशेष—इस शब्द का प्रयोग समीप, संबध आदि अर्थो में भी मिलता है, जैसे, अपिकक्ष, अपिकक्ष्य, अपिकर्ण, आदि । संभावना, प्रश्न, गर्हा, शंका, समुच्चय, अयुक्त पदार्थ, कामचार क्रिया,विरोध, वितर्क अर्थ में भी इसका प्रयोग विहित है ।

अपि ^१ † पु सर्व॰ [हिं॰ आप] स्वयं । खुद । उ॰—अपि बैठी सुंदर परदे के अंदरु, बुला मुल्ला कुँ, अपने घर के भीतर ।— दक्खिनी॰ पृ॰ २४९ ।

अपि ^२ पु अव्य [हिं॰] दे॰ 'अपि' ^१ । उ॰—धनवंत कुलीन मलीन अपि । द्विज चीन्ह जनेउ उघार तपी ।— मानस,७ ।१०१