अभंग
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
अभंग ^१ वि॰ [सं॰ अभड़्ग॰]
१. अखंड़ । अटूट । पूर्णा । उ॰—जनता की सेवा का व्रत मैं लेता अभंग ।—अपरा, पृ॰ ६४ ।
२. अनाशवान् । न मिटनेवाला । उ॰—आदि, मध्य अरू अंत लौं, अबिहड़ सदा अभंग । कबीर उस करता की सेवग तजै न संग ।—कबीर गग्रं॰, पृ॰ ८६ ।
३. जिसका क्रम न टूटे । लगा- तार । उ॰—प्रिये, प्रिये उत्तर दो मैं ही करता नहीं पुकार अभंग ।—साकेत, पृ॰ ३८५ ।
४. जो भंग या नष्ट न किया जा सके । सुदृढ़ । उ॰—निपट अभंग गढ़ कोट सब हारे तैं ।—भुषण ग्रं॰ पृ॰ ८२ ।
अभंग ^२ संज्ञा पुं॰
१. संगीत में एक प्रकार का ताल जिसमें एक लघु, एक गुरू और दो प्लुत मात्राएँ होती हैं ।
२. एक प्रकार का पद या भजन जिनका व्यवहार मराठी में होता है । जैसे— तुकाराम के अभंग ।
३. एक श्लेष जिसमें शब्द को विभक्त किए बिना ही दसरा अर्थ प्रकट हो । अर्थश्लेष (को॰) ।
४. भंग या पराजय का अभाव (को॰) ।