अरणि

विक्षनरी से

हिन्दी

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

अरणि संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]

१. प्रकार का वृक्ष । गनियार । अँगेयू ।

२. सूर्य ।

३. काठ का बना हुआ एक यंत्र जो यज्ञों में आग निकालने के काम आता है । अग्निमंथ । विशेष—इसके दो भाग होते हैं—अरणि या अधरारणि और उत्तरारणि । यह शमीगर्भ अश्वत्य से बनाया जाता है । अध- राराणि नीचे होती है और इसमें एक छेद होता है । इस छेद पर उत्तरारणि खड़ी करके रस्सों से मथानी के समान मथी जाती है । छेद के नीचे कुश या कपास रख देते हैं जिसमें आग लग जाती है । इसके मथने के समय वैदिक मंत्र पढ़ते हैं और ऋत्विक् लोग ही इसके मथने आदि का काम करते हैं । यज्ञ में प्रायः अरणि से निकली हुई आग ही काम में लाई जाती हैं ।

४. चीता नामक वृक्ष या उसकी लकड़ी ।

५. श्योनाक । सोना पाढ़ा ।

६. अग्नि ।

७. चकमक पत्थर ।