अरस

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

अरस ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ अ॰ अर्श] आलस्य । उ॰—नहिंन दुरत हरि प्रिय कौ परस । उपजत है मन को अति आनँद, अधरनि रँग, नैननि को अरस ।—सूर॰, १० ।२६५९ ।

अरस पु संज्ञा पुं॰ [अ अर्ब्श]

१. छत । पाटन ।

२. धरहरा । महल । उ॰—(क) मारु मारु कहि गारि दे, धिक गाइ चरैया । कंस पास ह्वै आइए कामरी ओढ़ैया । बहुरि अरस तैं आइ कै, तब अंबर लोजौ ।—सूर॰, १० ।३०३८ । (ख) अरस नाम है महल कौ, जहँ राजा बैठे । गारी दै दैसब उठे, भुज निज कर ऐठे ।—सूर॰ (शब्द॰) ।

३. आकाश । उ॰—चलकर महल निकट गिर पहुँचिय चढ़ रज अरस फरक धुज चाहि ।— र घु॰ रू॰ पृ॰ ११९ ।

४. मुसलमानों के मतानुसार सबसे ऊपरवाला स्वर्ग जहाँ खुदा रहता है ।