अशोक
प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
अशोक ^१ वि॰ [सं॰] शोकरहित । दु:खशुन्य । उ॰—देव अदेव नृदेव अरु, जितने जीव त्रिलोक । मन भायौ पायौ सबन कीन्हें सबन अशोक ।—रामचं॰, पृ॰ १९२ ।
अशोक ^२ संज्ञा पुं॰
१. एक प्रसिद्ध पेड़ । विशेष—इसकी पत्तियाँ आम की तरह लंबी और किनारों पर लहरदार होती है । इसमें सफेद मंजरी (मौर) लगती है जिसके झड़ जाने पर छोटे छोटे गोल फल लगते हैं जो पकने पर लाल होते हैं, पर खाए नहीं जाते । यह पेड़ बड़ा सुंदर और हरा भरा होता है, इससे इसे बगीचों में लगाते हैं । शुभ अवसरों पर इसकी पत्तियों की बंदनवारें बाँधी जाती हैं । यह शीतल, कसैला, कडुआ, मल को रोकनेवाला, रक्तदोष को दूर करनेवाला और कृमिनाशक समझा जाता हैं । इसकी छाल विशेषकर स्त्री रोगों में दी जाती है । इसके दो भेद होते हैं— एक के पत्ते रामफल के समान औऱ फूल कुछ नारंगी रंग के होते हैं । यह फागुन में फूलता है । दूसरे के पत्ते लंबे लंबे और आम के पत्तों के सामान होते हैं और इसमें सफेद फूल वसंत ऋतु में लगते हैं । पर्या॰—विशोक । मधुपुष्प । ककेलि । वेलिक । रक्तपल्लव । रागपल्लव । हेमपुष्प । बंजुल । कर्णपूर । ताम्रपल्लव । वामांघ्रिघातन । राम । रामा । नट । पिंड़ी । पुष्प । पल्लव- द्रुम । दोहलीक । सुभग । रोगितरु ।
२. पारा ।
३. भारतवर्ष का एक प्राचीन मौर्यवंशीय सम्राट् ।
४. विष्णु का एक नाम [को॰] ।
५. बकुल वृक्ष [को॰] ।
६. प्रसन्नता । आह्लाद [को॰] ।