अष्टाङ्ग

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

अष्टांग ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ अष्टाङ्ग] [वि॰ स्त्री॰ अष्टांगी]

१. योग की क्रिया के आठ ङेद—यम, नियम, आसन प्राणायम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, और समाधि । उ॰—भक्ति पंथ कौं जो अनुसरै । सो अष्टांग जोग कौ करै ।—सूर॰ १ ।३६४ ।

२. आयुर्वेद के आठ विभाग शल्य, शालाक्य, कार्यचिकित्सा, भुतविद्या, कौमारभृत्य, अगदतंत्र, रसायनतंत्र और वाजीकरण ।

३. शरीर के आठ अंग—जानु, पद, हाथ, उर, शिर, वचन, दृष्टि, बुद्धि, जिनसे प्रणाम करने का विधान है ।

४. अर्घविशेष जो सूर्य को दिया जाता है । इसमें जल, क्षीर, कुशाग्र, घी, मधु, दही, रक्त चंदन और करवीर होते हैं ।

अष्टांग ^२ वि॰

१. आठ अवयववाला ।

२. अठपहल ।