असंगति

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

असंगति संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ असङ्गति]

१. असंबंध । बेसिलसिलापन ।

२. अनुपयुक्तता । नामुनासिबत ।

३. एक काव्यालंकार जिसमें कार्यकारण के बीच देश-काल-संबंधी अन्यथात्व दिखाया जाय, अर्थात् सृष्टिनियम के विरुद्ध कारण कहीं बताया जाय और कार्य कहीं; किसी नियत समय में होनेवाले कार्य का किसी दूसरे समय में होना दिखाया जाय । उ॰—'हरत कुसुम छबि कामिनी, निज अंगन सुकुमान । मार करत यह कुसुमसर, युवकन कहा विचार ।' यहाँ फूलों की शोभआ हरण करने का दोष स्त्रियों ने किया; उसका दंड उनको न देकर कामदेव ने युवा पुरुषों को दिया । विशेष—कुवलयानंद में और दो प्रकार से असंगति का होना मान गया है । एक तो एक स्थान पर होनेवाले—कार्य के दूसरे स्थान पर होने से, जैसे—'तेरे अँग की अंगना, तिलक लगायो पानि' । दूसरे, किसी के उस कार्य के विरुद्ध कार्य करने से जिसके लिये वह उद्दत हुआ हो; जैसे—'मोह मिटावन हेतु प्रभु, लीन्हो तुम अवतार । उलटो मोहन रूप धरि, मोहयो सब ब्रजनार' ।