अस्तेय संज्ञा [सं॰] १. चोरी का त्याग । चोरी न करना । २. योग के आठ अंगों में नियम नामक अंग का तीसरा भेद । यह स्तेय अर्थात् बल से या एकांत में पराए धन का अपहरण करने का उलटा या विरोधी । इसका फल योगशास्त्र में सब रत्नों