अहो
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]अहो अव्य॰ [सं॰] एक अव्यय जिसका प्रयोग कभी संबोधन की तरह और कभी करुणा, खेद, प्रशंसा, हर्ष और विस्मय सूचित करने के लिये होता है; जैसे, (संबोधन) जाहु नहीं, अहो जाहु चले हरि जात चले दिनहीं बनि बागे ।-केशव (शब्द॰) । (करुणा, खेद) अहो! कैसे दुख का समय है । (प्रशंसा) अहो ! धन्य तब जनम मुनीसा ।—तुलसी (शब्द॰) । (हर्ष) अहो भाग्य ! आप आए तो । (विस्मय) दूनो दूनो बाढ़त सुपूनो की निसा में, अही आनँद अनुप रूप काहू ब्रज बाल को । पद्माकर (शब्द॰) । कभी कभी केवल पादपूरणार्थक भी प्रयोग होता है । जैसे, भारत कहो तो आज तुम क्या हो वहो भारत अहो ।-भारत॰, पृ॰ ८५ ।