आक
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]आक ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ अर्क, प्रा॰ अक्क] मंदार । अकौप्रा । अकवन । उ॰— (क) पुरवा लागि भूमि जल पूरी । आक जवास भई तस झूरी ।— जायसी ग्रं॰, पृ॰ १५३ । (ख) कबिरा चंदन बीरवै, बेधा ऐक पलाश । आप सरीख कर लिया, जो होते उन पास । — कबीर (शब्द॰) । (ग) देत न अघात रीझि जात पात आक ही के भीलानाथ जोगी अब औढर ढ़रत हैं । - तुलसी ग्रं॰ पृ॰ २३७ । मुहा॰— आक की बुढ़िया = (१) मदार का घूआ । (१) बहुत बूढी़ स्त्री ।
आक ^२ पुं॰ वि॰ [सं॰ अक =दुख] दुखी । उ॰ — ताक करम भेषज विदित, लखात नहीं मतिहीन । तुलसी सठ अकवस बिहठि दिन दिन दीन मलीन । —स॰ सप्तक, पृ ४७ ।