आकर्ष

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

आकर्ष संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. एक जगह के पदार्थ का बल से दूसरी जगह जाना । खिंचाव । कशिंश । क्रि॰ प्र॰— करना—खींचना । उ॰— तैसे ही भुवभार उतारन हरि हलधर अवतार । कालिंदी आकर्ष कियो हरि मारे दैत्य अपार ।— सूर । (शब्द॰) ।

२. पासे का खेल ।

३. बिसात जिसपर पासा खेला जाय । चौपड़ ।

४. इंद्रिय ।

५. धनुष चलाने का अभ्यास ।

६. कसौटी ।

७. चुंबक ।