आगर
हिन्दी[सम्पादन]
प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]
शब्दसागर[सम्पादन]
आगर ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ आकर=खाना] [स्त्री॰ आगरी]
१. खान । आकर ।
२. समूह । ढेर । विशेष—यह शब्द प्रायः समासंत में आता है । जैसे,—गुण- आगर । बल-आगर ।
३. कोष । निधि । खजाना । उ॰—अस वह फूल बास का आगर भा नासिका समुंद । जेति फूल वह फूलहि ते सब भए सुगंद ।—जायसी (शब्द॰) ।
४. वह गड्ढा जिसमें नमक जाता है ।
५. नमक का कारखाना ।
आगर ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ अर्गल=व्योड़ा] ब्योंड़ा । अगरी । उ॰— आगर इक लोह जटित लीन्हों बरिबंड । दुहुँ करनि असुर हयो भयो मांस पिंड ।—सूर॰ ९ । ९६ ।
आगर ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ आगार=घर]
१. घर । गृह ।
२. छाजन का एक भेद जिसमें फूस या खर की जड़ ओलती की ओर करके छवाई होती है ।
३. छाजन । छप्पर । उ॰—तृण तृण बरि भा झूरी खरी । भा बरषा आगर सिर परी ।— जायसी (शब्द॰) ।
आगर ^४ वि॰ [सं॰ आकर=श्रेष्ठ] [स्त्री॰ आगरि, आगरी]
१. श्रेष्ठ । उत्तम । बढ़कर । उ॰—(क) दई दीन्ह अस जगत अनूपा । एक एक ते आगर रूपा ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) जिनको साँई रँग दिया कबहुँ न होय कुरंग । दिन दिन बानी आगरी चढ़ै सवाया रंग ।—कबीर (शब्द॰) ।
२. चतुर । होशियार । दक्ष । कुशल । उ॰—जो लाँघै सत योजन सागर । करै सो रामकाज अति आगर ।-तुलसी (शब्द॰) ।