आचार्य
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]आचार्य वि॰ [सं॰] [संज्ञा आचर्य]
१. आचरण करने योग्य ।
२. जाने योग्य [को॰] ।
आचार्य संज्ञा पुं॰ [सं॰] [स्त्री॰ आचार्या, आचार्याणी] [वि॰ आचार्यी]
१. उपनयन के समय गायत्री मंत्र का उपदेश करनेवाला । गुरु । विशेष—पाणिनि ने चार प्रकार के शिक्षकों का उल्लेख किया है । आचार्य, प्रवक्ता, श्रोत्रिय, अध्यापक । इनमें आचार्य का स्थान सर्वोच्च था । शिष्य का उपनयन कराने का अधिकार तो आचार्य को ही था । स्वयं आचार्य का काम करनेवाली स्त्री आचार्या कहलाती है । आचार्य की पत्नी को आचार्यानी कहते हैं ।
२. वेद पढ़ानेवाला ।
३. यज्ञ के समय कर्मोपदेशक
४. पुज्य । पुरोहित ।
५. अध्यापक ।
६. ब्रह्नासूत्र के चार प्रधान भाष्यकार ।—(क) शंकर, (ख) रामानुज, (ग) मध्व और (घ) वल्लभाचार्य
७. वेद का भाष्यकार ।
८. शास्त्रीय व्याख्या करनेवाला । तात्विक दृष्टि से गुण दोष का विवेचन करनेवाला ।
९. किसी महाविद्यालय का प्रधान अधिकारी और अध्यापक । प्रिंसिपल । प्राचार्य [को॰] ।
१. किसी शास्त्र या विषय का धुरंधर पंडित या ज्ञाता [को॰] । यौ॰.—आचार्यकुल=गुरुकुल । आचार्यवान्=उपनीत ।