आड़
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]आड़ ^२ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ अल=डंक, पा॰ अड, प्रा॰ आड़] बिच्छू या भिड़ आदि का डंक ।
आड़ ^३ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ आलि= रेखा]
१. लंबी टिकली जिसे स्त्रियाँ माथे पर लगाती हैं । उ॰—गौरी गदकारी परै हँसत कपोलनु गाड़ । कैसी लसति गँवारि यह सुनकिरवा की आड़ ।—बिहारी र॰, दो॰ ७०८ ।
२. स्त्रियों के मस्तक पर का आड़ा तिलक । उ॰—केसव, छबीलो छत्र सीसफूल सारथी सो केसर की आड़ि अधि रथिक रची बनाइ ।—केशव ग्रं॰, भा॰१, पृ॰ ९० । (ख) मंगल बिंदु सुरंग, ससि मुखु केसरि आड़ गुरु । इक नारी लहि संगु, किय रसमय लोचन जगत ।— बिहारी र॰, दो॰, ४२ ।
३. माथे पर पहनने का स्त्रियों का एक गहना । टीका ।