आत्मोत्सर्ग संज्ञा पुं॰ [सं॰] परोपकार के लिये अपने को दुःख या विपत्ति में डालना । दूसरे की भलाई के लिये अपने हिताहित का ध्यान छोड़ना । स्वार्थत्याग ।