आनन्द
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]आनंद ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ आनन्द] [वि॰ आनंदित, आनंदी]
१. हर्ष । प्रसन्नता । खुशी । सुख । मेद । आहलाद । क्रि॰ प्र॰— आना । — करना ।— देना ।— पाना ।— भोगना । मनान । — मिलना । — रहना । — लेना । जैसे,— (क) कल हमको सैर में हडा आनंद आया । (ख) यहाँ हवा में बैठे खूब आनंद ले रहे हो । (ग) मूर्खों की संगति में कुछ भी आनंद नहीं मिलता । यौ॰— आनंदमंगल । मुहा॰— आनंद के तार या ढोल बजाना =आनंद के गीत गाना । उत्सव मनाना ।
२. प्रसन्नता या खुशी की चरम अवस्था जो ब्रह्म की तीन प्रधान विभूतियों में सें एक है । उ॰— सत्, चित और आनंद, ब्रह्म के इन तीन स्वरूपों से काव्य और भक्तिमार्ग 'आनंद' स्वरूप को लेकर चले ।— रस॰, पृ॰ ५५ ।
३. मध । शराब ।
४. शिव (को॰) ।
५. विष्ण (को॰) ।
६. बुद्ध के एक प्रधान शिष्य (को॰) ।
७. द्डक छ्द का एक भेद (के॰) ।
८. ४८ वें संवत्सर का नाम (को॰) ।
आनंद ^२ वि॰ आनंद । आनंदमय । प्रसन्न । जैसे,— आनंद रहो । विशेष— यह विशेषणवत् प्रयोग ऐसे ही दो एक नियत वाक्यों में होता है । पर ऐसे स्थानों में बी यदि आनंद को विशेषण न मानना चाहें, तो उसके आगे 'से' लुप्त मान सकते है ।