आभीर
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]आभीर संज्ञा पुं॰ [सं॰] [स्त्री॰ आभीरी]
१. अहीर । ग्वाल । गोप । उ॰— आभीर जमन किरात खस स्वपचादि अति अघ रुप जे । —मानस । ७ । १३० । विशेष—ऐतिहासिकों के अनुसार भारत की एक वीर और प्रसिद्द जाति जो कुछ लोगों के मत से बाहर से आई थी । इस जातिवालों का विशेष ऐतिहसिक महत्व माना जाता है । कहा जाता है कि उनकी संस्कृति का प्रभाव भी भारतीय संस्कृति पर पड़ा । वे आगे चलकर आर्यों में घुलमिल गए । इनके नाम पर आभीरी नाम की एक अपभ्रंश (प्राकृत) भाषा भी थी । य़ौ॰—आभीरपल्ली= अहीरों का गाँव । ग्वालों की बस्ती ।
२. एक देश का नाम ।
३. एत छंद जिसमें ११ । मात्राएँ होती है और अंत में जगण होता है । जैसे—यहि बिधि श्री रघुनाथ । गहे भरत के हाथ । पूजत लोग अपार । गए राज दरबार ।
४. एक राग जो भैरव राग का पुत्र कहा जाता है ।