आभ्यंतर
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]आभ्यंतर वि॰ [सं॰ आम्यंतर] भीतरी । अंतर का उ॰—काव्य का आभ्यंतर स्बरुप या आत्मा भाव या रस है । -रस॰ पृ॰ १०५ । यौ॰—आभ्यंतर तप=भीतरी तपस्या । यह तपस्या छह प्रकार की हीती है—(१) प्रायश्चित्त, (२) वैयावृत्ति , (३) स्वाध्याय, (४) विनय, (५) व्युत्सर्ग और (६) शुभ ध्यान ।