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आरभटी

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

आरभटी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]

१. क्रोधादिक उग्र भावों की चेष्टा । उ॰—झूठौ मन झूठी सब काया, झुठी आरभटी । अरु झूठन को बदन निहारत मारत फिरत लटी ।-सूर (शब्द॰) ।

२. एक प्रकार की नृत्यशैली [को॰] ।

३. नाटक में एक वृत्ति का नाम विशेष—इस वृत्ति में यमक का प्रयोग अधिक होता है । इसके द्वारा माया, इंद्रजाल, संग्राम, क्रोध, आघात, प्रिताघात और बंधनादि विविध रौद्र, भयानक और बीपत्स रस दिखाए जाते हैं । इसके चार भेद हैं-वस्तूसत्थावन, संफैट, संक्षिप्ति और अवपातन (१) वस्तूत्थापन=ऐसी वस्तुओं का प्रदर्शन या वर्णन जिससे रौद्रादि रसों की सूचना हो । जैसे,—सियारों का बोलना और श्मशान आदि । (२) सफेट=दो आदमियों का झटपट आकर भिड़ जाना । (३) संक्षिप्त=क्रोधादि उग्र भावो की निवृत्ति । जैसे,—रामचंद्र जी की बातों को सुनकर परशुराम के क्रोध की निवृत्ति (४) अवपातन:=प्रवेश से निष्कमण तक रौद्रादि भावों का अविच्छिन्न प्रदर्शन ।