आस
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]आस ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ आशा]
१. आशा । उम्मेद । उ॰—साथि चले सँग बीछुरा, भए बिच समुद पहार । आस निरासा हौं फिरौं, तू विधि देहि अधार ।—जायसी ग्रं॰, पृ॰ ३० ।
२. लालसा । कामना । उ॰—तजहु आस निज निज गृह जाहू । लिखा न बिधि बैदेहि बिबाहू ।—मानस, १ ।२५२ ।
३. सहारा । आधार । भरोसा । जैसे,—हमें किसी दूसरे की आस नहीं । मुहा॰—आस करना=(१) आशा करना । (२) आसरा करना । मुँह ताकना । जैसे,—चलते पौरुष किसी की आस करना ठीक नहीं । आस छोड़ना=आशा परित्याग करना । उम्मेद न रखना । आस टूटना=निराश होना । जैसे,—जब आस टूट जाती है, तब कुछ करते धरते नहीं बनता । आस तकना= (१) आसरा देखना । इंतजार करना । जैसे,—तुम्हारी आस तकते तकते दोपहर हो गए । (२) सहायता की अपेक्षा रखना । मुँह जोहना । जैसे,—ईश्वर न करे किसी की आस तकनी पड़े । आस तजना=आशा छोड़ना । आस तोड़ना= किसी की आशा के विरुद्ध कार्य करना । किसी को निराश करना । जैसे,—किसी की आशा तोड़ना ठीक नहीं । आस देना=(१) उम्मेदबँधाना । किसी को उसको इच्छानुकुल कार्य करने का वचन देना । जैसे,—किसी को आस देकर तोड़ना ठीक नहीं । (२) संगीत में किसी बाजे या स्वर से सहायता देना । आस पुराना=आशआ पूरी करना । आस पूजना=आशआ पूरी होना ।
आस ^२पु संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ आशा] दिशा । उ॰—जैसे तैसे बीतिगे कलपत द्वादश मास । आई बहुरि बसंत ऋतु विमल भई दस आस ।—रघुराज (शब्द॰) ।
आस ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. धनुष । कमान ।
२. चूतड़ ।
३. आसान (को॰) ।
४. उपवेशन । बैठना (को॰) ।
५. संनिधि । सामीप्य (को॰) । यौ॰—कप्यास ।