आसन

विक्षनरी से

हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

आसन ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. स्थिति । बैठने की विधि । बैठक । जैसे,— ठीक आसन से बैठो । विशेष—यह अष्टांग योग तीसरा अंग है और पाँच प्रकार का होता है—पद्मासन, स्वस्तिकासन, भद्रासन, वज्रासन और वीरासन । कामशास्त्र या कोकशास्त्र में भी रतिप्रसंग के ८४ आसन हैं । यौ॰—पदमासन । सिद्धासन । गरुड़ासन । कमलासन । मयूरासन । मुहा॰—आसन उखड़ना=(१) अपनी जगह से हिल जाना । (२)घोड़े की पीठ पर रान न जमना । जैसे,—वह अच्छा सवार नहीं है; उसका आसन उखड़ जाता है । आसन उठना=स्थान छूठना । प्रस्थान होना । जानना । जैसे,—तुम्हारा आसन यहाँ से कब उठेगा? आसन करना=(१) योग के अनुसार अंगों को तोड़ मरोड़कर बैठना । (२) बैठना । टिकना । ठहरना । जैसे,—उन महात्मा ने वहाँ आसन किया है । आसन कसना= अंगों को तोड़ मरोड़कर बैठना । आसन छोड़ना=उठ जाना । चला जाना । आसन जमना=(१) जिस स्थान पर जिस रीति से बैठे, उसी स्थान पर उसी रिति से स्थिर रहना । जैसे,—अभी घोड़े की पीठ पर उनका आसन नहीं जमता है । (२) बैठने में स्थिर भाव आना । जैसे,—अब तो वहाँ आसन जम गया, अब जल्दी नहीं उठते । आसन जमाना= स्थिर भाव से बैठना । जैसे,—वह एक घड़ी भी कहीं आसन जमाकर स्थिर भाव से नहीं बैठता । आसन जोड़ना= दे॰ 'आसन जमाना' । आसन डिगना=(१) बैठने में स्थिर भाव न रहना । (२) चित्त चलायमान होना । मन डोलना । इच्छा और प्रवृत्ति होना । (जिससे जिस बात की आशा न हो वह यदि उस बात को करने पर राजी या उतारू हो तो उसके विषय में यह कहा जाता है ।) जैसे,—(क) जब रुपया दिखाया गया, तब तो उसका भी आसन डिग गया । (ख) उस सुंदरी कन्या को देख नारद का आसन डिग गया । आसन डिगाना=(१) जगह से विचलित करना । (२) चित्त को चलायमान करना । लोभ या इच्छा उत्पन्न करना । आसन डोलना=(१) चित्त चलायमान होना । लोगों के विश्वास के विरुद्ध किसी की कीसी वस्तु की ओर इच्छा या प्रवृत्ति होना । जैसे—मेनका के रूप को देख विश्वामित्र का भी आसन डोल गया । (ख) रुपए का लालच ऐसा है कि बड़े बड़े महात्माओं का भी आसन डोल जाता है । (२) चित्त क्षुब्ध होना । हृदय पर प्रभाव पड़ना । हृदय में भय और करुणा का संचार होना । जैसे,—(क) विश्वामित्र के घोर तप को देख इंद्र का आसन डोल उठा । (ख) जब प्रजा पर बहुत अत्याचार होता है, तब भगवान् का आसन डोल उठता है । आसन डोल=कहारों की बोली । जब पालकी का सवार बीच से खिसककर एक ओर होता है और पालकी उस ओर झुक जाती है तब कहार लोग यह वाक्य बोलते हैं । आसन तले आना=वश में आना । अधीन होना । आसन देना=सत्कारार्थ बैठने के लिये कोई वस्तु रख देना य ा बतला देना । बैठाना । आसन पहचानना = बैठने के ढ़ंग से घोड़े का सवार को पहचानना । जैसे, —घोड़ा सवार को पह- चानता है, देखो मालिक के चढ़ने से कुछ इधर उधर नहीं करता । आसन पाटी = खाट खटोला । ओढ़ने बिछाने की वस्तु । आसन पाटी लेकर पड़ना = अटवाटी खटवाटी लेकर पड़ना । दुख और कोप प्रकट करने के लिये ओढ़ना ओढ़कर या बिछौना बिछाकर खूब आडंबर के साथ सोना । आसन बाँधना = दोनों रानों के बीच दबाना । जाँघों से जकड़ना । आसन मारना = (१) जमकर बैठना । (२) पालथी लगा कर बैठना । उ॰— मठ मंड़प चहुँ पास सकारे । जपा तपा सब आसन मारे ।—जायसी (शब्द॰) । आसन लगाना = (१) आसन मारना । जम कर बैठना । (२) टिकना । ठहरना । जैसे, —बाबा जी, आज तो यहीं आसन लगाइए । (३) किसी कार्य के साधन के लिय़े अड़कर बैठना । जैसे, —यदि आज न दोगे तो यहीं आसन लगावेगा । (४) बैठने की वस्तु फैलाना । बिछौना बिछाना । जैसे,—बाबा जी के लिये यहीं फैलाना । लगा दो । आसन होना = रतिप्रसंग के लिये उद्यत होना ।

२. बैठने के लिये कोई वस्तु । वह वस्तु जिसपर बैठें । विशेष—बाजार में ऊन,मूँज य़ा कुश के बने हुए चौखूँटे आसन मिलते हैं ।—लोग इनपर बैठकर अधिकतर पूजन या भोजन करते है ।

३. टिकान या निवास । (साधुओं की बीली) ।

४. साधुओं का ड़ेरा या निवास स्थान । क्रि॰ प्र॰— करना = टिकना । ड़ेरा ड़ालना ।—देना = टिकना । ठहराना । ड़ेरा देना ।

५. चूतड़ ।

६. हाथी का कंधा जिसपर महावत बैठता है ।

७. सेना का शत्रु के सामने ड़टे रहना ।

८. उपेक्षा की नीति से काम करना । यह प्रकट करना कि हमें कुछ परवाह नहीं है । विशेष—इस नीति के अनुसार शत्रु के चढ़ आने या घेरने पर भी राजा लोग नाचरंग का सामान करते है ।

८. कौटिल्य के अनुसार उदासीन या तटस्थ रहने की नीति । आक्रमण के रोके रहने की नीति ।

१०. एक दुसरे की शक्ति नष्ट करने में असमर्थ होकर राजाओं का संधि करके चुपचाप रह जाना । विशेष—यह पाँच प्रकार का कहा गया है—विगृह्यासन, संधाना— सन, संभूयासन, प्रसंगासन और उपेक्षासन ।

आसन ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. जीवक नाम का अष्टवर्गीय ओपधि ।

२. जीरक । जीरा ।