आसव
हिन्दी[सम्पादन]
प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]
शब्दसागर[सम्पादन]
आसव संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. वह मद्य जो भभके से न चुआई जाय, केवल फलों के खमीर को निचोड़कर बनाई जाय । उ॰— इड़ा ड़ालती थी वह आसव जिसकी बुझती प्यास नहीं ।— कामायनी, पृ॰ १८३ ।
२. औषध का एक भेद । कई द्रव्यों को पानी में मिलाकर भूमि में ३०-४० या ६० दिन तक गाड़ रखते है फिर उस खमीर को निकालकर छान लेते हैं । इसी को आसव कहते है ।
३. अर्क ।
४. वह पात्र जिसमें मद्य रखा जाय़ ।
५. उत्तेजन ।
६. मकरंद । पुष्परस (को॰) ।
७. अधर रस (को॰) ।