इज्जत
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]इज्जत संज्ञा स्त्री॰ [अ॰ इज्जत] मान । मर्यादा । प्रतिष्ठा । आदर । उ॰—समझते हैं इज्जत को दौलत से बेहतर ।—कविता कौ॰, भा॰ ४, पृ॰ ५९३ । मुहा॰—इज्जत उतारना=मर्यादा नष्ट करना । जैसे,—जरा सी बात के लिये वह इज्जत उतारने पर तैयार हो जाता है । क्रि॰ प्र॰—करना=प्रतिष्ठा या संमान करना ।—खोना= अपनी मर्यादा नष्ट करना । जैसे,—तुमने अपने हाथों अपनी इज्जत खोई है ।—गँवाना=दे॰ 'इज्जत खोना' ।—जाना > जैसे,—पैदल चलने से क्या तुम्हारी इज्जत चली जायेगी ।—देना=(१) मर्यादा खोना । जैसे,—क्या रुपए के लालच में हम अपनी इज्जत देंगे ? (२) गौरवान्वित करना । महत्व बढ़ाना । जैसे,—बरात में शरीक होकर आपने हमें बड़ो इज्जत दी ।—पाना=प्रतिष्ठा प्राप्त करना । जैसे,—उन्होंने इस दर्बार में बड़ी इज्जत पाई ।—बिगाड़ना=प्रतिष्ठा नष्ट करना । जैसे,—बदमाश भले आदमियों की राह चलते इज्ज त बिगाड़ देते हैं ।—रखना=मर्यादा स्थिर रखना । बेइज्जती न होने देना । जैसे,—इस समय १००) देकर आपने हमारी इज्जत रख ली ।—लेना=इज्जत बिगड़ना ।—होना= आदर होना । जैसे,—उनकी चारों तरफ इज्जत होती है । यौ.—इज्जतदार ।