ईहामृग

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

ईहामृग संज्ञा पुं॰[सं॰]

१. नाटक का एक भेद जिसमें चार अंक होते हैं । इसका नायक इश्वर या किसी देवता का अवतार औऱ नायिका दिव्य स्त्री होती हैं जिसके कारण युद्ध होता है । इसकी कथा प्रसिद्ध और कुछ कल्पित होती है । कुछ लोग इसमें एक ही अंक मानते हैं । मृग के तुल्य अलभ्य कामिनी की नायक इसमें ईहा करते है । अत:इसे ईहामृग कहते हैं ।

२. भेडिया ।