उकसौंहाँ पु वि॰ [हिं॰ उकसना + औहाँ (प्रत्य॰)] [स्त्री॰] उकसौंहीं] उभड़ता हुआ । उठता हुआ । उ॰—उर उकसौहैं उरज लखि धरत क्यों न धनि धीर । इनहिं बिलोकि बिलोकि— यतु सौतिन के उर पीर । ।—पद्दाकर ग्रं॰, पृ॰ ८५ ।