उड़ाना
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]उड़ाना ^१ क्रि॰ स॰ [हिं॰ उड़ना का सक॰ रूप]
१. किसी उड़नेवाली वस्तु को उड़ने में प्रवृत्त करना । जैसे,—वह कबूतर उड़ाता है ।
२. हवा में फैलाना । हवा में इधर उधर छितराना । जैसे,— सुगंध उड़ाना । धूल उड़ाना । अबीर उड़ाना । उ॰—(क) जेहि मारुत गिरि मेरु उड़ाहीं । कहुहु तूल केहि लेखे माहीं ।—मानस, १ ।१२ । (ख) जानि कै सुजान कही लै दिखाओ लाल प्यारेलाल नैसुक उघारे पर सुगंध उड़ाइए ।—प्रिया॰ (शब्द॰)
३. उड़नेवाल े जीवों कौ भगाना या हटाना । जैसे—चिड़ियों को खेत में से उड़ा दो ।
४. झटके के साथ अलग करना । चट से पृथक् करना । काटना । गिराकर दूर फेंकना । जैसे—(क) उसने चाकू से अपनी अँगुली उड़ा दी । (ख) मारते मारते खाल उड़ा देंगे । (क) सिपाहियों ने गोलों से बुर्ज उड़ा दिए । उ॰—असि रन धारत जदपि तदपि बहु सिर न उड़ावत ।— गोवाल (शब्द॰) ।
५. हटाना । दूर करना । गायब करना । जैसे,—बाजीगर ने देखते देखते रूमाल उड़ा दिया ।
६. चुराना । हजम करना । जैसे,—चोर ने यात्री की गठरी उड़ाई ।
७. दूर करना मिटाना । नष्ट करना । खारिज करना । जैसे, (क) गुरु ने लड़के का नाम रजिस्टर से उड़ा दिया । (ख) उसने सब अक्षर उड़ा दिए । ८ खर्च करना । बरबाद करना । जैसे—उसने अपना धन थोड़े ही दिनों में उड़ा दिया ।
९. खाने पिने की चीज को खूब खाना पीना । चट करना । जैसे,—लोग शराब कबाब उड़ा रहे हैं ।
१०. किसी भोग्य वस्तु को भोगना । जैसे,—स्त्रीसंभोग करना ।
११. आमोद प्रमोद की वस्तु का व्यवहार करना । जैसे,—लोग वहाँ ताश या शतरंज उड़ाते हैं । (ख) थोड़ी देर रह उसने तान उड़ाई ।
१२. हाथ या हलके हथियार से प्रहार करना । लगाना । मारना । जैसे— चपत उड़ाना । बैंत उड़ाना, जूते उड़ाना, डंडे उड़ाना इत्यादि ।
१३. भुलावा देना । बात काटना । बात टालना । प्रसंग बदलना । जैसे,—हमें बातों ही में मत उड़ाओ, लाओ कुछ दो । (च) हम उसी के मुँह से कहलाना चाहते थे; पर उसने बात उड़ा दी । ११ झूठ मूठ दोष लगाना । झूठी अपकीर्ति फैलाना । जैसे,—व्यर्थ क्यों किसी को उड़ाते हो ।
१५. किसी विद्या या कला कौशल को इस प्रकार चुपचाप सीख लेना कि उसके आचार्य या धारणकर्ता को खबर न हो । जैसे,—जब कि उसने तुम्हें सिखाने से इनकार किया तब उसने वह विद्या कैसे उड़ाई ।
१६. दौड़ना । वेग से भगाना । जैसे,—उसने अपना घोड़ा उड़ाया और चलता हुआ ।
उड़ाना ^२पु क्रि॰ स॰ [हिं॰ उढ़ाना] दे॰ 'ओढ़ाना' । उ॰—कोई दिन सर पर छतर उड़ावे ।—दकिखनी॰, पृ॰ ६४ ।