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उड़ाना

विक्षनरी से

प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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उड़ाना ^१ क्रि॰ स॰ [हिं॰ उड़ना का सक॰ रूप]

१. किसी उड़नेवाली वस्तु को उड़ने में प्रवृत्त करना । जैसे,—वह कबूतर उड़ाता है ।

२. हवा में फैलाना । हवा में इधर उधर छितराना । जैसे,— सुगंध उड़ाना । धूल उड़ाना । अबीर उड़ाना । उ॰—(क) जेहि मारुत गिरि मेरु उड़ाहीं । कहुहु तूल केहि लेखे माहीं ।—मानस, १ ।१२ । (ख) जानि कै सुजान कही लै दिखाओ लाल प्यारेलाल नैसुक उघारे पर सुगंध उड़ाइए ।—प्रिया॰ (शब्द॰)

३. उड़नेवाल े जीवों कौ भगाना या हटाना । जैसे—चिड़ियों को खेत में से उड़ा दो ।

४. झटके के साथ अलग करना । चट से पृथक् करना । काटना । गिराकर दूर फेंकना । जैसे—(क) उसने चाकू से अपनी अँगुली उड़ा दी । (ख) मारते मारते खाल उड़ा देंगे । (क) सिपाहियों ने गोलों से बुर्ज उड़ा दिए । उ॰—असि रन धारत जदपि तदपि बहु सिर न उड़ावत ।— गोवाल (शब्द॰) ।

५. हटाना । दूर करना । गायब करना । जैसे,—बाजीगर ने देखते देखते रूमाल उड़ा दिया ।

६. चुराना । हजम करना । जैसे,—चोर ने यात्री की गठरी उड़ाई ।

७. दूर करना मिटाना । नष्ट करना । खारिज करना । जैसे, (क) गुरु ने लड़के का नाम रजिस्टर से उड़ा दिया । (ख) उसने सब अक्षर उड़ा दिए । ८ खर्च करना । बरबाद करना । जैसे—उसने अपना धन थोड़े ही दिनों में उड़ा दिया ।

९. खाने पिने की चीज को खूब खाना पीना । चट करना । जैसे,—लोग शराब कबाब उड़ा रहे हैं ।

१०. किसी भोग्य वस्तु को भोगना । जैसे,—स्त्रीसंभोग करना ।

११. आमोद प्रमोद की वस्तु का व्यवहार करना । जैसे,—लोग वहाँ ताश या शतरंज उड़ाते हैं । (ख) थोड़ी देर रह उसने तान उड़ाई ।

१२. हाथ या हलके हथियार से प्रहार करना । लगाना । मारना । जैसे— चपत उड़ाना । बैंत उड़ाना, जूते उड़ाना, डंडे उड़ाना इत्यादि ।

१३. भुलावा देना । बात काटना । बात टालना । प्रसंग बदलना । जैसे,—हमें बातों ही में मत उड़ाओ, लाओ कुछ दो । (च) हम उसी के मुँह से कहलाना चाहते थे; पर उसने बात उड़ा दी । ११ झूठ मूठ दोष लगाना । झूठी अपकीर्ति फैलाना । जैसे,—व्यर्थ क्यों किसी को उड़ाते हो ।

१५. किसी विद्या या कला कौशल को इस प्रकार चुपचाप सीख लेना कि उसके आचार्य या धारणकर्ता को खबर न हो । जैसे,—जब कि उसने तुम्हें सिखाने से इनकार किया तब उसने वह विद्या कैसे उड़ाई ।

१६. दौड़ना । वेग से भगाना । जैसे,—उसने अपना घोड़ा उड़ाया और चलता हुआ ।

उड़ाना ^२पु क्रि॰ स॰ [हिं॰ उढ़ाना] दे॰ 'ओढ़ाना' । उ॰—कोई दिन सर पर छतर उड़ावे ।—दकिखनी॰, पृ॰ ६४ ।