उदास
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]उदास ^१ वि॰ [सं॰ उत्+आस]
१. जिसका चित्त किसी पदार्थ से हट गया हो । विरक्त । उ॰—(क) घरहीं महँ रहु भई उदासा । अंचल खप्पर श्रृंगी खासा ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) तेहि के बचन मानि विश्वासा । तुम्ह चहहु पति सहज उदासा । मानस, १ ।७९ । (ग) नि:किंचन जन मैं मम वास । नारि संग तैं रहौं उदास ।—सूर, १० ।४१९५ ।
२. झगड़े से अलग । निरपेक्ष । तटस्थ । जो किसी के लेन देन में न हो । उ॰—(क) एक भरत कर संमत कहहीं ।एक उदास बाय सुनि रहहीं ।—मानस, २ ।४८ ।
३. खिन्नचित । दु:खी । रंजीदा । उ॰— (क) साधू, भँवरा जग कली, निसि दिन फिरै उदास । टुक इक तहाँ बिलंबिया जहुँ शीतल शब्द निवास ।—कबीर (शब्द॰) । (ख) हाड़ जरै ज्यों लाकड़ी केश जरै ज्यों घास । यह सब जलता देखि के भया कबीर उदास ।—कबीर (शब्द॰) । रामचंद्र अवतार कहत हैं सुनि नारद मुनि पास । प्रकट भयो निश्चर मारन को सुनि वह भयो उदास ।—सूर (शब्द॰) ।
उदास पु ^२ संज्ञा पुं॰
१. दु:ख । खेद । रंज । उ॰—कहहिं कबीर दासन के दास । काहुहि सुख दे काहुहि उदास । —कबीर (शब्द॰) ।
उदास ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. ऊपर उठना । उठना ।
२. तटस्थता । विरक्ति । संन्यास [को॰] ।