उद्

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

उद् ^१ उप॰ [सं॰] एक उपसर्ग जो शब्दों के पहले लगकर उनमें इन अर्थों की विशेषता उत्पन्न करता है—ऊपर, जैसे—उदगमन; अतिक्रमण, जैसे,—उत्तीर्ण, उत्क्रांत; उत्कर्ष, जैसे—उदबोधन, उदगति; प्राबल्य, जैसे—उदवेग, उदबल; प्राधान्य, जैसे— उद्देश; अभाव जैसे— उत्पथ, उदवासन; प्रकाश, जैसे— उच्चारण; दोष, जैसे—उन्मार्ग ।

उद् ^२ संज्ञा पुं॰

१. मोक्ष ।

२. ब्रह्म ।

३. सूर्य । जल ।

उद् ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰] जल । पानी । समास आदि या अंत में प्रयुक्त, जैसे अछोद, क्षीरोद, उदकुंभ, उदकोष्ठ, उदपात्र = जलपूर्ण घट ।

उद् ध्मान संज्ञा पुं॰ [सं॰] चूल्हा । सिगड़ी [को॰] ।

उद् ध्वंस संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. नाश । उच्छेद । कर्कशता । कठोरता । (वाणी की] । (रोग से) ग्रस्त होना [को॰] ।

उद् ध्वस्त वि॰ [सं॰] ध्वस्त । गिरा पड़ा हुआ । टूटा हुआ । भग्न । नष्ट ।