उपजना

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

उपजना क्रि॰ अ॰ [सं॰ 'उत्पद्यते,' विकरयुक्त 'उत्पद्य' से प्रा॰ उपज्ज, उपज्ज, उपज+ना] उत्पन्न होना । उगना । उ॰— जेहि जल उपजे सकल सरिरा, सो जल भेद जान कबीरा । —कबीर (शब्द) । (ख) खेन में उपजै सब कोई खाय, घर में उपजे घर बहि जाय ।— पहेली (शब्द॰) । बिनसइ उपजइ ज्ञान जिमि पाइ कुसंग सुसग ।— मानस । ४ । दो॰ १५ । विशेष—गद्य में इस शब्द का प्रयोग बड़े जीवो के लिये नहीं होता है । जड़ और वनस्पति के लिये होता है । पर पद्य में इसका व्यवहार सबके लिये होता है । उ॰—जिमि कुपूत के उपजे कुल सद्धर्म नमाहिं ।— मानस, ४ । दो॰ १५ ।