उपनिषद्
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]उपनिषद् संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]
१. पास बैठना ।
२. ब्रह्मविद्या की प्राप्ति के लिये गुरु के पास बैठना ।
३. वैद की शाखाओं के ब्राह्मणों के वे अतिम भाग जिसमें ब्रह्माविद्या अर्थात् आत्मा, परमात्मा आदि का निरूपण रहता है । विशेष—कोई कोई उपनिषदें संहिताओं में भी मिलती है; जैसे ईश, जो शुक्ल यजुर्वद का ४० वाँ अध्याय माना जाता है । प्रधान उपनिषदें ये हैं—ईश या वाजसनेय, केन या तवल्कार, कठ, प्रश्न, मृुडक, मांडूक्य, तौत्तिरीय, ऐतरेय, छांदोग्य, बृहदारण्य । इनके अतिरिक्त कौषीतकी, मेत्रायणी, और श्वेताश्वतर भी आर्ष मानी जाती हैं । उपनिषदों की संख्या कोई १८, कोई, ३४, कोई ५२ और कौई १०८ तक मानते हैं पर इनमें से बहुत सी बहुत पीछे की बनी हुई हैं ।
४. वेदव्रत ब्रह्मचारी के ४० संस्कारों में से एक जो गोदान अर्थात् केशांत संस्कार के पहले होता है ।
५. निर्जन स्थान ।
५. धर्म ।