उपमान

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

उपमान संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. वह वस्तु जिससे उपमा दी जाय । वह जिसके समान कोई दूसरी वस्तु बतलाई जाय । वह जिसके धर्म का आरोप किसी वस्तु में किया जाय । जैसे,—'उसका मुख कमल के समान है' इस वाक्य में 'कमल' उपमान है ।

२. न्याय में चार प्रकार के प्रमाणों में से एक । किसी प्रसिद्ध पदार्थ के साधर्म्य से साध्य का साधन । वह निश्चय जो किसी वस्तु को किसी अधिक परिचित वस्तु के कुछ समान देखकर होता है । जैसे—'गाय नीलगाय की तरह होती है' इस बात को सुनकर यदि कोई जगल में गाय की तरह का कोई जानवर देखेगा तो समझेगा कि यह नील गाय है । वास्तव में उपमान अनुमान के अंतर्गत आ जाता है । इसी से योग में तीन ही प्रमाण माने गए है : प्रत्यक्ष, अनुमान और शब्द ।

३. २३ मात्रायौं का एक छंद जिसमें १३ वीं मात्रा पर विराम होता है । उ॰—अब बोलि ले हरिनामै, काल जात बीता । हाथ जोरि बिनती करौं, नाहिं जात रीता ।—छंद॰, पृ॰ ५२ ।