उपस्थान
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]उपस्थान संज्ञा पुं॰ [सं॰] [वि॰ उपस्थानीय, उपस्थित]
१. निकट आना । सामने आना ।
२. अभ्यर्थना या पूजा के लिये निकट आना ।
३. खड़े होकर स्तुति करना । खड़े होकर पूजा करना । उ॰—दै दिनकर को अर्घ्य मंत्र पढ़ि परस्थान पुनि कीन्हों । गायत्री को जपन लगे पुनि ब्रह्म बीज मन दीन्हें ।— रघुराज (शब्द॰) । विशेष—इस प्रकार का विधान प्राय: सूर्य ही री पूजा में है ।
४. पूजा का स्थान । कोई पावित्र स्थान ।
४. समा । समाज ।
६. प्रस्तुत राज्जकर इकट्ठा करना ओर पुराना बाकी वसूल करना ।
७. अखाड़ा । मल्लशाला (को॰) ।
८. स्मृति । याददाश्त (को॰)
९. प्राप्ति (को॰) ।
१०. स्वीकृति । समझीता करना (प्रेमी की भाँति) (को॰) ।