उपादान
हिन्दी[सम्पादन]
प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]
शब्दसागर[सम्पादन]
उपादान संज्ञा पुं॰ [सं॰] [वि॰ उपादेय]
१. प्राप्ति । ग्रहण । स्वीकार ।
२. ज्ञान । परिचय । बोध ।
३. अपने अपने विषयों ले हंद्रियों की निवृत्ति ।
४. वह कारण जो स्वयं कार्य रूप में परिणत हो जाय । सामग्री जिससे कोई वस्तु तैयार हो । जैसे, घड़े का उपादान कराण मिट्टी है । वैशेषिक में इसी को समवायिकरण कहते हैं । सांख्य के मत से उपादान और कार्य एक ही है ।
५. सांख्य की चार आध्यात्मिक तुष्टियों में से एक, जिसमें मनुष्य एक ही बात से पूरे फल की आशा करके ओर प्रयत्न छोड़ देता है । जैसे, 'संन्यास, लेने से ही विवेक हो जायगा;यह समझकर कोई संन्यास ही लेकर संतोष कर ले और विवेकप्राप्ति के लिये ओर यत्न न करे ।