उर
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]उर संज्ञा पुं॰ [सं॰ उरस्]
१. वक्षस्थल । छाती । यौ॰—उरोज । मुहा॰—उर आनना वा लाना = छाती से लगाना । आलिंगन करना । उ॰—(क) दिन दस गए बालि पहँ जाई । पूछेहु कुशल सखा उर लाई ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) ताप सरसानी, देखै अति अकुलानी, जऊ पति उर आनी तऊ सेज में बिलानी जात ।—पद्माकर (शब्द॰) ।
२. हृदय । मन । चित्त । उ॰—करउ सो मम उर धाम सदा छीरसागर सयन ।—तुलसी (शब्द॰) । मुहा॰—उर आनना वा लाना = मन में लाना । ध्यान करना । विचारना । समझना । उ॰—उर आनहु रघुपति प्रभुताई ।— तुलसी (शब्द॰) । उर धरना = ध्यान में रखना । ध्यान करना । उ॰—बंदि चरण उर धरि प्रभुताई । अंगद चलेउ सबहिं सिर नाई ।—तुलसी (शब्द॰) ।