उलहना

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

उलहना ^१ †पु क्रि॰ अ॰ [सं॰ उल्लसन]

१. उथड़ना । निकलना । प्रस्फुटित होना । उ॰—(क) दोष वसंत को दीजे कहा उलही न करीला की डारन पाती ।—पद्माकर (शब्द॰) । (ख) उलटे महि अंकुर मंजु हरे । बगरी तहँ इंद्रबधू गन ये । (शब्द॰) ।

२. उमड़ना । हुलसना । झूलना । उ॰—(क) केलि भवन नव बेलि सी दुलही उलही कंत, बैठि रही चुप चंद लखि तुमहिं बुलावत कंत, उ॰—पद्माकर (शब्द॰) । (ख) काजर भीनी कामनिधि दीठ तिरीछी पाय भरयो । मंजरिन तिलक तरु मनहुँ रोम उलहाय ।—हरिशचंद्र (शब्द॰) ।

उलहना ^२पु † क्रि॰ स॰ [सं॰ उपलम्भ॰ प्रा,॰ उवालंभ, उवालेभ] दे॰ 'उलहना' ।

उलहना ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ उल्लसन] उल्लासित करना । बढ़ाना । उ॰— मनो कुलहा रघुवंस को चारु दुरयो जिय उहलता उलहावै ।—उत्तर॰, पृ॰ १८ ।