ऊखाणा पु † संज्ञा पुं॰ दे॰ 'उपखान' । उ॰—(क) खाघो सो ही मीठ है, अग्र जनम किण दीठ । ऊखांणों अदतां पढ़ै, पूरब पद दे पीठ । —बाँकी ग्रं॰, भा॰ २, पृ॰ २७ । (ख) ऊखाणो सायद भरे, सो गोला घर सून ।—बाँकी॰ ग्रं॰, भा॰ २, पृ॰ ८८ ।