ऊखिल पु † वि॰ [देश॰] पराया । अपरिचित । उ॰—रूपनिधान सुजान लखें बिन आँखिन दीठि हि दई है ऊखिल ज्यौं खरकै पुतरीन मैं, सूल की मूल सलाक भई है ।— घनानंद॰, पृ॰ ५ ।