ऐंठना

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

ऐंठना ^१ क्रि॰ स॰ [सं॰ आवेष्ठन, पा॰ आवेट्ठन या हिं॰ ऐंठ+ ना (प्रत्य॰)]

१. घुमाव देना । बटना । बल देना । मरोड़ना । घुमाव के साथ तानना या कसना । संयो क्रि॰—डालना ।—देना । यौ॰—ऐंठी की बेल=पत्थर के खंभे पर बनी हुई वह बेल जो उसके चारों ओर लिपटी हो ।

२. दबाब डालकर वसुल करना । संयो॰ क्रि॰—लेना ।

३. धोखा देकर लेना । झँसना । उ॰—हम खुशामदी नहीं हैं कि किसी की झूठी प्रशंसा करके कुछ ऐंठा चाहें ।—प्रताप॰ ग्रं॰, पृ॰ ७१५ । संयो॰ क्रि॰—रखना ।—लेना ।

ऐंठना ^२ क्रि॰ अ॰

१. बल खाना ।

२. पेंच खाना । खिंचाव । घुमाव के साथ तनना ।

२. तनना । खिंचना । अकड़ना । जैसे,—हाथ पाँव ऐंठना । मुहा॰—पेट ऐंठना=पेट या आँतों में मरोड़ या दर्द होना ।

३. मरना ।

४. अकड़ दिखाना । घमंड करना । इतराना । उ॰—अब भरि जनम सहेलिया, तकब न ओहि । ऐंठल गो अभिमनिया तजि के मोहि ।—रहीम (शब्द॰) ।

५. टेढ़ी सीधी बातें करना । टर्राना । उ॰—तबहीं तैं उनि हमहिं भुलायौ गई उतहिं कौं घाई । अब तौ तरकि तरकि ऐंठति है लेनी लेति बनाइ ।—सूर॰, १० ।२४०५ ।