ओड़ना
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]ओड़ना क्रि॰ स॰ [सं॰ ओणन=हटाना या हिं॰ ओड़+ना (प्रत्य॰)]
१. रोकना । वारण करना । आड़ करना । उ॰— होहिं कुठायँ सुबंधु सहाये । ओड़िअहिं हाथ असनिहु के धाये ।—मानस, २ ।३०५ ।
२. ऊपर लेना । सहना । उ॰—दूसरी ब्रह्म की शक्ति अमोघ चलावत ही हाइ हाइ भइ है । राख्यो भले सरनागत लक्ष्मन फूलि कै फूल सी ओड़ लई है ।—राम चं॰, पृ॰ १२१ ।
३. (कुछ लेने के लिये) फैलाना । पसारना । रोपना । उ॰—(क) लेहु मातु, सहिदानि मुद्रिका दई प्रीति करि नाथ । सावधान ह्वै सोक निवारहु ओड़हु दच्छिन हाथ । सूर॰ ९ ।८३ । (ख) संपदा के कीजै कहौ कौनै नहिं ओडयो हाथ । —गंग॰, पृ॰ १२८ । (ग) अंचल ओड़ि मनवहिं विधि सों सबै जनकपुर नारी । विघ्न निवारि विवाह करावहु जो कुछ पुन्य हमारी ।—रघुराज (शब्द॰) ।