ओढ़ना
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]ओढ़ना ^१ क्रि॰ स॰ [सं॰ अवा या उपा+वेष्ठन, प्रा॰ ओवेट्ठण]
१. कपड़े या इसी प्रकार की और वस्तु देह ढकना । शरीर के किसी भाग को वस्त्र आदि से आच्छादित करना । जैसे,—रजाई ओढ़ना, दुपट्टाऔढ़ना, चद्दर औढ़ना । उ॰—मारग चलत अनीति करत है, हठ करि माखन खात । पीतांबर वह सिर तैं औढ़त अंचल द मुसुकात । —सूर॰, १० ।३३८ ।
२. अपने ऊपर लेना । सहना । उ॰—परै सो ओंढ़ै सीस पर भीखा सनमुख जोइ । दृढ़ निस्चै हरि को भजै होनी होइ सो होइ ।—भीखा॰, श॰ पृ॰ ९४ ।
३. जिम्मे लेना । भागी बनना । अपने सिर लेना । जैसे,—उनका ऋण हमने अपने ऊपर ओढ़ लिया । उ॰—बोलै नहीं रह्यों दुरि बानर द्रुम में देह छिपाइ । कै अपराध ओढ़ अब मेरा कै तू देहि दिखाइ । —सूर॰, (शब्द॰) । मुहा॰—ओढ़े या बिछावें?=क्या करें? किस काम में लावें? उ॰—दुसह वचन अलि हमैं न भार्वै । जोंग कहा ओंढ़ैं कि बिछावैं । —सूर॰, १० ।४०९४ ।
ओढ़ना ^२ संज्ञा पुं॰ ओढ़ने का वस्त्र । उ॰—मधूलिका का छाजन टपक रहा था । ओंढ़ने की कमी थी । वह ठिठुरकर एक कोने में बैठी थी ।—आँधी, पृ॰ ११७ । यौ॰—ओढ़ना बिछौ़ना=(१) ओंढ़ने और बिछाने का वस्त्र । (२) व्यवहार की वस्तुएँ । सरंजाम । टंटघंट । मुहा॰—ओढ़ना उतारना=अपमानित करना । इज्जत उतारना । ओढ़ना ओढ़ाना =राँड़ स्त्री के साथ सगाई करना (छोटी जाति) । ओढ़ना गले में डालना =बाँधकर न्यायकर्ता के पास ले जाना । अपराधी बनाकर पकड़ रखना । विशेष—पहले यह रीति थी कि जब छोटी जाति की स्त्रियों के साथ कोई अत्याचार करता था तब वे उसके गले में कपड़ा डालकर चौधरी के पास ले जाती थीं । ओढ़ना बिछौना बनाना=हर वक्त या बेपरवाही से काम में लाना ।