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औन्धा

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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औंधा ^१ वि॰ [सं॰ अधः या अव+अधः] [वि॰ स्त्री॰ औंधी]

१. उलटा । पट । जिसका मुँह नीचे की ओर हो । जैसे; औंधा बरतन । उ॰—औंधा घड़ा नहीं जल डूबै सूधे सों घट भरिया । जेहि कारन नर भिन्न भिन्न करु गुरु प्रसाद ते तरिया ।—कबीर (शब्द॰) । मुहा॰—औंधी खोपड़ी का = मूर्ख । जड़ । कूढ़मग्ज । उ॰— कबिरा औंधी खोपड़ी, कबहूँ धापै नाहिं । तीन लोक की संपदा कब आवै घर माँहि ।—कबीर (शब्द॰) । औंधी समझा = उल्टी समझ । जड़ बुद्धि ।—औंधे मुँह = मुँह के बल । नीचे मुँह किए । औंधे मुँह गिरना = (१) मुँह के बल गिरना । (२) बेतरह चूकना या धोखा खाना । झटपट बिना सोचे समझे कोई काम करके दुःख उठाना । जैसे,—वे चले तो थे हमें फँसाने, पर आप ही औंधे मुँह गिरे । (३) भूल करना । भ्रम में पड़ना । जैसे,—रामायण का अर्थ करने में वे कई जगह औंधे मुँह गिरे हैं । औंधा हो जाना । = (१) गिर पड़ना (२) बेसुध होना । अचेत होना ।

२. नीचा । उ॰—राजा रहा दृष्टि कै औंधी । रहि न सका तब भाँट रसौंधी ।—जायसी (शब्द॰) ।

३. वह जिसे गुदाभंजन कराने की आदत हो । गांडू (बाजारू) ।

औंधा ^२ संज्ञा पुं॰ एक पकवान जो बेसन और पीठी का नमकीन तथा आटे का मीठा बनता है । उलटा । चिल्ला । चिलड़ा ।