कइ
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]कइ ^१पु प्रत्य॰ [ हिं॰ की]
१. की उ॰ — शोमा दशरथ भवन कइ, को कवि बरनै पार । — मानस, १ ।२९७ । ।
२. को । के लिये । उ॰— तोहि सम हित न मोर संसारा । बहे जात कइ भइसि अधारा । — मानस,२ ।२३ ।
कइ ^२पु वि॰ [सं॰ कति, प्रा॰ कइ ]
१. कितनी । उ॰— जनम लाभ कई अवधि अधाई ।—मानस॰, २ ।५२ ।
कइ ^३पु क्रि॰ वि॰ [ सं॰ कंदा, प्रा॰ कया,पु † कद] कब । उ॰— कइ परणै रुषमणी किसान । — वेलि॰, पृ॰ १९८ ।
कइ ^४पु अव्य [फा॰ कि] या । अथवा । उ॰— जइ तूँ ढोला नावियउ कइ फागून कइ चेत्रि । —ढोला॰, दू॰ १४६ ।