ककहरा

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

ककहरा संज्ञा स्त्री॰ [ क+ क+ह+रा (प्रत्य॰)] क से इ तक वर्णमाला । बरतनिया । विशेष— बालकों को पढ़ाने के लिये एक प्रकार की कविता होती है जिसके प्रत्येक चरण आदि में प्रत्येक वर्ण क्रम से आता है । ऐसी कविताओं में प्रत्येक वर्ण दो बार रखा जाता है, जैसे— क का कमल किरन में पावै । ख खा चाहै खोरि मनावै ।—कबीर (शब्द॰) ।